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Filed a 498A case, will I necessarily get divorce along with it


10-Apr-2023 (In Divorce Law)
Maine Apne husband per 498a complaint file ki hai kya ye jruri hai ki iske baad mere husband ko divorce mil hi jayega mai usko divorce nhi dena chati kyunki usne janbujhkar divorce lene k liye hi mujhe bht mental physical torture kiya h pls rply as early as possible I am a hindu girl
Answers (5)

Answer #1
862 votes
Madam, the filing of section 498A of the penal code is a separate and independent proceedings from that of divorce proceedings under the Hindu marriage act. The filing of the 498A case is unlikely to have any bearing on the proceedings for divorce filed by your husband. However a proper and careful reply should be filed in the divorce case
Answer #2
974 votes
गिरफ्तारी का नोटिस मिलते ही आप अपने वकील को अग्रिम ज़मानत आवेदन तैयार करने का निर्देश दें। यह ज़मानत आवेदन लगभग हूबहू आप के उस नोटिस ज़मानत आवेदन जैसा ही होगा, जिसका विस्तृत वर्णन आप अग्रिम ज़मानत सम्बंधित इस लेख में देख सकते हैं। अग्रिम ज़मानत भारत की आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं ४३७ और ४३८ के अनुसार दी जाती है। गौर तलब है की जज आप को अग्रिम ज़मानत उस ही स्थिति में दे सकता है जिस में आप इन धाराओं में वर्णित सभी मानदंडों पर खरे उतरते हैं। एक शरीफ नागरिक के लिए इन मानदंडों को संतुष्ट करना कोई मुश्किल बात नहीं है। यदि आप ने किसी निपुण वकील को अपना ज़मानत का केस दिया है, और आप उस वकील की गतिविधियों को ठीक से संचालित करने में सक्षम हैं तो आप को चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है।

ये सब होने के अलावा जब आप के ज़मानत मसौदे को तैयार किया जा रहा हो उस वक्त आप का अपने वकील के दफ्तर में मौजूद रहना वांछित है। ऐसा करने से आप अपनी बात अदालत के समक्ष बेहतर तरीके से रख पाएंगे। यह भी बहुत ज़रूरी है की आप निरंतर वकील के संपर्क में रहें और जैसे जैसे उसे मालूम हो वैसे वैसे आप उस से अपनी तारीखों की अग्रिम सूचना लेते रहें। अदालत में तारीख पर पहुंचना भी उम्दा विचार है। ऐसा करने से आप वकील के तर्क वितर्क देख-सुन पाएंगे और अपने मुकदमे में वकील की चुस्ती का आकलन कर पाएंगे।

न्यायाधीश भी बड़े गौर से आपके वकील की तेज़ी और सक्रियता देखेगा। वह आप के ज़मानत आवेदन को पढ़ भी सकता है, और यथोचित बिंदुओं को नोट कर सकता है। पर आमतौर पर जज छोटे मामलों में याचिकाओं को ज़यादा ध्यान से नहीं पढ़ते हैं। ४९८अ (498a) मामले में डाली गयी अग्रिम ज़मानत अर्ज़ी ऐसे जजों के लिए कोई ख़ास बात नहीं है, जैसे जजों से आप दो चार होने जा रहे हैं। यह बात इसलिए कही जा रही है क्यूंकि अग्रिम ज़मानत याचिकाएं सिर्फ ज़िला एवं सत्र न्यायालय या उस से ऊपर के न्यायालय अधिनिर्णीत कर सकते हैं। ऐसी अदालतों के जज विशिष्ट व्यक्तिओं की श्रेणी में आते हैं। मंत्रियों और उद्योगपतियों से ये लोग हर रोज़ दो चार होते हैं। यह खास तौर से उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के बारे में कहा जा सकता है।

जज आप की सामाजिक स्थिति पर गौर डालेगा। क्या आप शरीफ आदमी हैं? यदि आप आवारा या अनपढ़ निकम्मे या बदनाम किस्म के हैं तो वो आप को अग्रिम ज़मानत नहीं देगा। जैसा कि कहा जाता है, बद से बदनाम बुरा। ऐसा सोचना मूर्खता होगी कि जज आप को आवारा होने कि स्थिति में भी सिर्फ इसलिए छोड़ देगा कि वो आप को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता है। आमतौर से असंतुष्ट पत्नियां अलग से वकील रखती हैं सिर्फ इस वजह से कि सरकारी वकील अपना काम ज़यादा चुस्ती से नहीं करते हैं। यह वकील इस बात का भरसक प्रयास करेगा कि जज आप को आवारा और निकम्मा मान ले।

यदि किसी व्यक्ति को भूत काल में किसी ऐसे जुर्म का दोषी ठहराया जा चूका है, जिसकी सज़ा ७ साल से अधिक हो सकती है तो उसे अग्रिम ज़मानत नहीं दी जा सकती। गौर फरमायें कि इस परिभाषा में वे सभी जुर्म तो शामिल हैं ही, जिन की सज़ा कम से कम ७ साल है, या जिन की कम से कम सज़ा ७ साल से अधिक है। वे जुर्म भी शामिल हैं जिन के अधिकतम सज़ा ७ साल या ७ साल से ज़यादा है। यदि आप पहले किसी जुर्म में दोषी पाये गए हैं, तो आपको चाहिए कि इस परिभाषा कि सख्ती को ध्यान से पहचानें।

सामान्य रूप से अग्रिम ज़मानत उन लोगों को भी नहीं प्रदान की जा सकती जो किन्ही भी २ या दो से ज़यादा मौकों पर किन्ही संज्ञेय और गैर ज़मानती इल्ज़ामों के अंतर्गत चलाये गए मुकदमों में दोषी ठहराए गए हों। लेकिन जजों को यह अधिकार है कि ऐसे लोगों को वे किन्ही विशेष लिखित कारणों से अग्रिम ज़मानत दे दें।

कुछ इसी प्रकार से, यदि जज का यह मानना है कि आप किसी ऐसे अपराध के प्रथम दृष्टा अपराधी हैं, जिस कि अधिकतम सज़ा आजीवन कारावास या मृत्यु दंड है, तो वो आप को ज़मानत देने से इंकार कर देगा। इस नियम के भी अपवाद हैं, लेकिन वे सिर्फ उन लोगों के लिए हैं जो महिला, १६ साल से कम उम्र के बच्चे, बूढ़े, विकलांग, बीमार, विकलांग, या कमज़ोर लोगों की श्रेणी में आते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि आप इन श्रेणियों के अंतर्गत किसी भी रहत के पात्र नहीं बन सकते, सिवाय कमज़ोर, बीमार या विकलांग श्रेणी के। यह बात यहाँ पर इस वजह से प्रासंगिक है, कि आजकल फैशन बन गया है कि धरा ४९८अ (498a) के इलज़ाम के साथ साथ बलात्कार या अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध का आरोप भी मढ़ दिया जाये। आमतौर पर ऐसे इलज़ाम आरोप पत्र चरण तक नहीं पहुँच पाते, लेकिन अग्रिम ज़मानत चरण पर काफी तंग करते हैं। एक साथ २ पत्नियां रखने का इलज़ाम भी इन मामलों में आम बात है, लेकिन ये इलज़ाम आजीवन कारावास से किसी भी स्थिति में दण्डनीय नहीं है। गौर तलब है कि ४९८अ (498a) का इलज़ाम दहेज़ संभंधित मृत्यु के इलज़ाम के साथ स्वतः नत्थी हो जाता है। पहला अपराध आजीवन कारावास से भी दंडनीय है।

इसके अलावा ध्यान दें कि जज को अग्रिम ज़मानत देने के कारण / कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना होता है। कोई भी जज आप को तब तक अग्रिम ज़मानत नहीं देगा जब तक के आप का वकील उसे ऐसी वजह या वजहें नहीं बताता जो कि किसी वरिष्ठ जज को पढ़ने पर काबिल ए ऐतबार लगें। हालांकि जज आप के वकील से ज़यादा कानून जानता है, लेकिन उस को ठोस कारणों से यकीन दिलाना आप के वकील का काम है। यदि ऐसा ना होता तो वकीलों की कोई ज़रुरत अदालतों को नहीं होती। जज को मालूम है की अग्रिम ज़मानत किसी भी ४९८अ (498a) आरोपित व्यक्ति के लिए खासी राहत है, और वकील को अपने मुवक्किल के लिए यह राहत वास्तव में अर्जित करनी चाहिए।

दहेज उत्पीड़न से अधिक गंभीर आरोपों को आक्षेपों में डालने के बारे में ऊपर दिए गए फैशन के अंदर एक पेंच और गिना जा सकता है। महज़ इल्ज़ामों के मौजूद होने से किसी को प्रथम दृष्टया दोषी नहीं माना जा सकता। कई बार देखा गया है कि जज ज़मानत आवेदन "आरोपों की गंभीरता" के कारण खारिज कर देते हैं। मेरे नज़दीक ऐसे फैसले तर्कसंगत नहीं माने जा सकते। कोई भी गधा किसी भी शरीफ या इज़्ज़तदार आदमी पर किसी भी तरह के इलज़ाम लगा सकता है। कोई मानव अपनी स्वतंत्रता मात्र आक्षेपों के कारण खो बैठे, ऐसा सिर्फ किसी घटिया और गिरे हुए समाज में हो सकता है। इसके अलावा यदि हम एक पल के लिए मान भी लें कि आरोपों की गंभीरता ज़मानत आवेदन ख़ारिज करने के लिए जायज़ वजह मानी जा सकती है तो यह भी सोचिये कि क्या हम किसी भी ऐरे गैरे गैर-संजीदा व्यक्ति के द्वारा लगाये गए आरोपों को प्रथम द्रष्टा सत्य मान सकते हैं? यह एक ज्वलंत प्रश्न है क्यूंकि हम ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ इंटरनेट के रास्ते व्यक्तियों, समूहों, और यहाँ तक के पूरे पूरे धर्मों पर निराधार और झटपट उत्पादित आरोप हर रोज़ लगाये जाते हैं।

न्यायाधीश आप को आज़ाद छोड़ने की सूरत में आप के द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ की सम्भावना के बारे में भी सोचेगा। अभियोजन पक्ष का काम है की वो जज को मनाएं कि आप ऐसे ही व्यक्ति हैं जो कि ज़मानत पर छूटने पर सबूतों के साथ छेड़ छाड़ करेगा। आप का वकील यह समझाने की कोशिश करेगा कि ना तो आप के पास ऐसा सामर्थ्य है और न ही ऐसा करने की कोई इच्छा आप को है। २ g घोटाले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो ने संजय चंद्रा (यूनिटेक) की ज़मानत रद्द करने का आवेदन डाला है, और यह इस वजह से डाला है कि उन के अनुसार उस ने विवेचना और अभियोजन को प्रभावित करने की कोशिश की है, और सबूतों के साथ छेड़ छाड़ करी है।

यहाँ हमें विरोधी वकील कि अगली आपत्ति का संकेत मिलता है। वह जज को मनाने की कोशिश करेगा की आप ज़मानत पर छूट कर तहकीकात और अभियोजन को प्रभावित करेंगे। एक कानून का पालन करने वाले नागरिक के लिए ऐसी बात का खंडन करना बहुत ही आसान है, ख़ास तौर पर अगर उस का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं हो। अपने वकील को निर्देश देवें कि वोह ऐसे घटिया आक्षेपों का सख्ती से खंडन करे। यदि इस काम में आप का वकील चूक गया या उसने कोई हील हुज्जत करी तो आप को अग्रिम ज़मानत शायद ही मिले।

कुछ इसी तरह से अभियोजन पक्ष आप पर ये आक्षेप लगाएगा कि आप बाहर रह गए तो गवाहों या शिकायतकर्ता को प्रभावित करेंगे या नुकसान पहुंचाएंगे या धमकी देंगे। ऐसे गैर ज़िम्मेदाराना आक्षेप इस मंशा के साथ लगाये जाते हैं कि आप को गुस्सा आये और आप का ध्यान बँट जाये, जिस से कि आप कोई गलती कर बैठें। कोई भी चतुर वकील ऐसी बेहूदा बातों को कामयाबी से बेकार कर सकता है, सिर्फ यह बोल कर कि अभियोजन पक्ष एक के बाद एक निराधार बातें बोल कर अदालत का कीमती समय बर्बाद कर रहा है। स्वाभाविक है कि जज को भी ज़यादा बकवास सुनने का शौक नहीं होता है, हालांकि उनकी नौकरी ही कुछ ऐसी है।

एक और बात जो आप के खिलाफ बोली जा सकती है वो यह है कि आप बाहर रह गए तो "फिर से" कोई अपराध करेंगे। आप का बेदाग़ रिकॉर्ड अदालत की नज़रों में इस बात को निरस्त करने के लिए पर्याप्त है। जज के दिल में कोई आशंका न छोड़ें।

जज का झुकाव आप की बनिस्बत आप के माता पिता और बहन को ज़यादा आसानी से ज़मानत देने की तरफ होगा। कानून ही कुछ ऐसा है। (यह कहने का यह मतलब नहीं है कि वो आप को ज़मानत देने से कतरायेगा।) इस के अलावा कम उम्र के आरोपियों, गर्भवती महिलाओं, विकलांग, कमज़ोर और बीमार लोगों को अग्रिम ज़मानत ज़यादा आसानी से मिलती है, उस सूरत को छोड़ के जिस में ऐसे व्यक्ति या लोगों के खिलाफ कड़े सबूत होवें। इस का यह मतलब नहीं है कि अदालत ज़मानत सुनवाई चरण पर ही सबूतों के परखच्चे देखेगी। इस पड़ाव पर सबूतों का महत्त्व सिर्फ प्रथम दृष्टा अभियोज्यता स्थापित करने तक सीमित है।

एक ऐसी बात है जो जज का झुकाव आप की पत्नी की ओर कर सकती है। यह है किसी भी किस्म के मेडिको कानूनी रिपोर्ट का उस के हाथ में होना। ऐसा होने पर आप के वकील को आप की पत्नी की विश्वसनीयता पर प्रहार करना होगा, और यह स्थापित करना होगा कि यह महिला नाकाबिल ए ऐतबार है। यह चेष्टा सुनवाई शुरू होते ही शुरू हो जानी चाहिए।

इसी प्रकार यदि बैंक के जरिये आप के ससुराल वालों की ओर से आप या आप के माता पिता के खाते में पैसा आने के कोई सबूत हैं तो सुनवाई कुछ लम्बा खिंच सकती है। जांच अधिकारी हर हाल में यह मांग करेगा कि उसे आप को पुलिस हिरासत में लेने कि ज़रुरत है, और इस की तर्कसंगतता वो कुछ इस तरह से स्थापित करने की कोशिश करेगा कि आप से पूछ ताछ पुलिस हिरासत में ही कुछ फल देगी। यह ऐसी बचकानी मांग है कि बचाव पक्ष के वकील इस मांग का हर सुनवाई में इंतज़ार करते हैं, सिर्फ इसलिए कि यह मांग उन्हें अभियोजन को निखट्टू दिखाने का औजार और मौका देती है। अब तो जज भी यह बोलते बोलते रोने लग जायेगा कि बाबा माफ़ करो छुट्टे नहीं हैं टाइम भी नहीं है।
Answer #3
631 votes
You filed a complaint against your husband need to know more about the complaint as this is a case of Dowry complaint as well as physical and mental torture for the dowry demand if it is a false complaint your husband can get divorce on the bases of false case. But if it is a true complaint he cannot get relief of any kind. You can meet me for further details
Answer #4
760 votes
ESSE DIVORCE NAHI HOTA JAB TAK TUM NAHI CHAHOGI,TUM SECTION 9 KA CASE DAAL SAKTI HO, KE MAI APNE HUSBAND KE SAATH REHNA CHAHTI HU VO MUJHE NAHI RAKH RAHA, ES KA CONCERNED COURT HI FAISLA KAREGI. 498 KA CASE DAALNE SE TO VO EK CRIMINAL CASE MAI FASEEGATUM NAHI.
Answer #5
566 votes
Dear Greetings, Nahi aapne jo complaint ki hai uske basis par divorce nahi mil sakta. Divorce ke liye alag se case karna padta. vo proceedings bilkul alag hoti 498A wali complaint se. Aapke husband ne divorce ka case aapkke against file kiya hai kya alag se?

Disclaimer: The above query and its response is NOT a legal opinion in any way whatsoever as this is based on the information shared by the person posting the query at lawrato.com and has been responded by one of the Divorce Lawyers at lawrato.com to address the specific facts and details.

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